आजकल के समय को देखते हुए ऐसा लगता हैं इंसान खुद को खुदा समझने लगा हैं...
इंसान ओर जानवर में सबसे बड़ा अंतर यह हैं कि इंसान स्वार्थी होता हैं...जानवर नही....
सिर्फ जबान ही इंसान को जानवर से बेहतर बनाती हैं...
या यह कह सकते हैं कि यदि जानवर भी बोल सकते तो उनकी वैल्यू इंसान से ज्यादा होती...
इंसान अपने गुरुर ओर स्वार्थ में इतना अंधा हो चुका हैं कि ना तो यह देख पा रहा हैं कि उसके कर्मो से पृथ्वी तबाह होने की तरफ अग्रसर होती जा रही हैं...
प्रकृति के साथ ताल मेल तो कब का छोड़ चुका हैं इंसान...
पूरा देश बाढ़ के आग़ोश मे हैं...जिसका भुगतान जानवरो को भी अपनी जान दे कर करना पड़ रहा है ....
पेड़ काटने पर अंकुश नही लग पा रहा है... जानवरो पर इतने अत्याचार हो रहे हैं... इंसान इतना डिप्रेसन में आ चुका हैं कि वो घर का गुस्सा बाहर या जानवरो पर उतारने लगा हैं...
पैसे कमाने की होड़ में अपनों से ही दूर होता जा रहा हैं...
जानवरो के साथ थोड़ा समय व्यतीत कर के डिप्रेसन कम होता हैं...कभी कभी गौ शाला घूम आओ , गौ वंश को हरा चारा खिला दो, सड़क पर रह रहे कुत्तो को रोटी दे दो..
चिड़ियों के लिए दाना पानी छत पर रख दो...
किसी गरीब, भिखारी को खाना /कपड़ा दे दो...
चिड़ियों के लिए दाना पानी छत पर रख दो...
किसी गरीब, भिखारी को खाना /कपड़ा दे दो...
क्या किसी ने नोटिस किया हैं..जब हम बिना स्वार्थ के किसी की मदद करते हैं तो अंदर संतोष आता हैं.....!!
मुझे cmmnt में अपने विचार बताए कि कब आपको अंदर से संतोष की भावना आती हैं...?
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